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________________ 87 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार तप से कर्म क्षय का महामार्ग होने के कारण दोनों का अपूर्व संगम है। जीवन का सही दिशासूचक है। तमसो मा ज्योतिर्गमय असतो मासद्गमय मृत्योर्माऽमृतं गमय जब हर क्षण जीवन में नवकार के पंच पदों का मंगल भाव गूंजेगा, मंगल भाव व क्रिया में तन मन तल्लीन होगा, फिर प्रीतिति होगी, नवकार महामंत्र के अमोध - प्रभाव की 'यह जगत में सर्वश्रेष्ठ मंगल है।' परिणति होगी कि वर्तमान जीवन हमारी भूलों के (भव भव की एवं इस जीवन की ) प्रायश्चित्त का सुअवसर है और सावद्य कर्म करने का तो विवेकवान के लिए प्रश्न ही नहीं होना चाहिए । यहाँ तक कि अवचेतन मन के जनम जनम के कर्मबन्धन के वर्तुल काटने का सुनहला सुअवसर है । ममकार एवं अहंकारमय कर्मबन्धन की ग्रंथियों की इतिश्री इन शुभ भावों से हो सकती है। राहें स्पष्ट हैं, शुभ ध्यान, प्रत्याख्यान । (गलती पुनः न करने का नित्य व्रत) । 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संयमों तवो । “दश्वैकालिक' मंजिल व राहें नवकार - पद हैं। इसलिए सर्वत्र अशरण में वहीं धर्म श्रेष्ठ मंगल है जो अहिंसा, संयम एवं तप युक्त है । ये ही उत्तम शरण है । अरिहंते सरणम् पवज्जामि, सिद्धेसरणं पवज्जामि । साहुसरणं पवज्जामि, केवलि पन्नतं, धम्म सरणं पवज्जामि ।।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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