SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 85/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार 24. निश्चय रूप से ऐसे पंच परमेष्ठि का ध्यान सब पापों का नाश करने वाला है। यह एक ओर जहाँ अरिहंत भगवत में शरणागत होना है, वहीं निश्चय दृष्टि से आत्म स्वरूप की ही अभिन्नतम उपासना है। इसमें शररणागत एवं पुरूषार्थ का अपूर्व संगम है ,फिर भी 'अप्पासो परमअप्पा' सिखाता है। लक्ष्य स्पष्ट करता है। भटकाव मिटाता है। अस्थि, चर्म, मम देह यह तामें ऐसी प्रीति, होती जो श्रीराम से तो मिटती भवभीति', के सिद्धान्त को चरितार्थ करता है। 25. इस महामंत्र के ध्यान की सरल विधि निम्न है। पायच्छित करणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं। पावणं कम्माणं निग्घायणढाए, ठामिकाऊसग्गं। तावकायं ठाणेण मोणेणं झाणेणं अप्पाण वोसिरामि। आत्मा अपने दोषों के प्रायश्चित की भावना से प्रेरित हो, आत्म शुद्धि ध्येय अपना, शल्य रहित बन, पूर्व संचित कर्मों का उत्सर्ग कर, केवल नमोअरिहताणं के पदों से अपने आपको जोड़ दे। निविडकर्म ग्रंथियाँ कटेंगी, पांच पदों के शुभ्रचमकीले श्वेत, लाल (अरूण), पीला, नीला एवं काले रंग क्रमशः पर ध्यान केन्द्रित होगा। 26. यह मंत्र केवल सिद्ध होने का मंत्र नहीं हैं जो कि परम अवस्था है। लेकिन लक्ष्य के प्रति आस्था, लगन एवं आनन्दमय होने से मानव जीवन भी श्रेष्ठ बनता जाता है। जल में कमल की तरह रहना सिखाता है। जहाँ जहाँ हम अपने विकृत स्वभाव, अवचेतन मन या पूर्वकर्मों के प्रभाव से विशेष रूप से गलती के पुनःपुनः शिकार होते हैं, यह मंत्र उनके प्रति जागरूकता पैदा कर, उन फलों से बचाता है। 'काएण काईआस्स, पडिक्कमें वाई अस्स, वायाए मणसा माणिसअस्स, सव्वस व्याइयारस्स।। -(वंदित्तु सूत्र)
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy