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________________ नवकार महामंत्र/82 ज्ञानाचार हेतु आवश्यक है सही समय अध्ययन, ज्ञानियो के प्रति परम विनय, ज्ञान के उपकरणों का आदर करें। उपधान तप, सीमित उपयुक्त आहार, ज्ञानदाता का नाम सादर प्रकट करें, न छुपावें, सूत्र का सही उच्चारण एवं अर्थ स्पष्ट करें। (2) दर्शनाचार हेतु निस्संकिअ निकंखिअ, निवितिगिच्छा अमूढदिट्टि अ अवगूह, थिरीकरणे, वच्छल पभावणे अट्ठ।। -(अतिचार गाथा सूत्रम्) - सत्य की सही पहचान होने के लिए स्वयं निशंक हों, अन्यमतों के क्षणिक चमत्कार से प्रभावित, भयभीत, भ्रमित न हों। न ऐसा स्वयं करें। अपने गुण एवं पराए दोष को लोपित करें। धर्म में स्थिर हो, अडिग हो, वात्सल्य भाव रखे तथा आत्मगुणों में उल्लासित हों। (3) चरित्राचार पणिहाणजोग जुत्तो, पंचहि समिइहिं तीहिगुत्तिहं। एस चरितायारो अट्ठविहो होई नायव्वों।। -(अतिचार गाथा सूत्रम्) यानी मन, वचन एवं काया इन तीन योगों से युक्त पाँचों समितियों, का पालन करें। यत्नूपर्वक होश से चले। हित मित वचन बोलने, जीवनोपयोगी वस्तुओं की सीमा रखें। व्युत्सर्ग समिति जो परठने की वस्तुएँ उन्हें भी होशपूर्वक अहिंसक विधि से विसर्जित करें। दस धर्मों का पालन करें। उत्तम क्षमा, मार्दव (अहंकार रहित) आर्जव (एक दम सरल, निष्कपट व्यवहार), सत्य (जो स्व एवं परहितकारी मधुर हो), शौच (आत्मशुद्धि) ,संयम, तप, त्याग, अकिंचन्य (निर्ग्रन्थ), परिग्रह रहित, ब्रह्मचर्य (ब्रह्म में स्थित हों, इन्द्रियों को समर्पित नहीं) ,बाईस परीषह सहन करते हों। आत्मा की प्रखरता की प्राप्ति हेतु कष्टों को सहर्ष वरण करते हों।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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