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________________ नवकार महामंत्र/78 ज्ञान गंगा रूपी आगम की रोशनी में ढूँढ सकें। विचार गोष्ठी हों, खुलापन हो। धर्म जड़ नहीं, धर्म प्राणवंत है। आज भी उतना ही, जितना पूर्व में था। आचार्य भगवन् नायक हैं। वे ही मार्गदर्शी हैं। अतः आचार्य भगवंत को नमस्कार किया गया है। 18. जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों का वर्णन साध्वी संघमित्राजी ने किया है। भगवान महावीर की परम्परा में आचार्य सुधर्मा स्वामी एवं दिगम्बरों के अनुसार गौतम गणधर से शुरू होती है। उन्होंने आगम वैभव को सुरक्षित रखा। तत्पश्चात् जम्बूस्वामी ने उसे संजोये रखा। ये सभी सर्वज्ञ बने। उनके पश्चात् छः श्रुत केवली हुए, यानी उनहें चौदह पूर्व का ज्ञान था । वे प्रभव, शयंभव, यशोभद्र, संभूतविजय, भद्रबाहु एवं स्थूलिभद्र हुए। पश्चातवर्ती आचार्यों में देवाधिक्षमाश्रमण के समय आगमों को लिपिबद्ध किया गया। आचार्य सुहस्ति सम्प्रति राजा के समय में हुए। आचार्य कुंदकुंद, उमास्वाति (तत्वार्थसूत्रादि के रचयिता) , सिद्धसेन दिवाकर (स्याद्वाद के रचयिता), संमतभद्र, हरिभद्र, हेमचंद्राचार्य, हीरविजय, नेमिचन्द, जिनदत्त, जिनकुशल श्री जी आदि भी पश्चातवर्ती स्वनामधन्य आचार्य हुए। वर्तमान युग में भी यशस्वी आचार्य हुए हैं, हो रहे हैं जैसे राजेन्द्र सूरी, शांति सूरी, वल्लभ सूरी, देशभूषण, जयाचार्य, हस्तीमल जी, तुलसी, महाप्रज्ञ, एलाचार्य, प्रकाश मुनि आदि प्रमुख हैं। यह सूची उदाहरणार्थ है, समूची नहीं है। अन्य भी उल्लेखनीय महान आचार्य हैं। महत्वपूर्ण बात नाम नहीं, आचार्य के गुण हैं जो इन गुणों से अनुप्राणित हों तथा युग की गति भी मोड़े इन गुणों की ओर। आचार्यों की यह महत्ती परम्परा अरिहंत, सिद्ध एवं मोक्षपथगामी साधुओं के बीच महान सेतु का कार्य कर रही है। आचार्य अपने गणों से श्लाघनीय हैं। जैन दर्शन मे आचार्यों की निर्धारित विशेषताएँ उनमें प्रतिबिम्बित होती हैं।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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