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________________ 79/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार 19. नमोउवझ्झायाणं । जो उपाध्याय हैं जो आत्मभाव में अवस्थित रहते हैं। सतत् आगमों का अध्ययन करते-करवाते हैं, इसलिए कई यशस्वी उपाध्याय हुए हैं जिन्होंने इन आदर्शों को चरितार्थ किया है। आगमों का निम्न परिचय दिया जा रहा है द्वादशांग (बारह अंग अर्थात् आगम) में जैन दर्शन का चिंतन, गूढ ज्ञान दर्शन भरा हुआ है। आचारांग - श्रमण निग्रंथों के आचार, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्याचार पर दो श्रुतस्कन्ध में 18 हजार पद हैं। बड़े गंभीर, स्पष्ट, सरल एवं अन्तःकरण को स्पर्श करने वाले भाव हैं। सूत्रकृतांग स्वमत एवं परमत के अनुसार कुल 363 परमतों का वर्णन करते हुए जैन मत की विशिष्टता उल्लेखित की है। 36,000 पद मे दो श्रुत स्कन्द हैं। स्न्थानांग- खानों, नदियों, पर्वत, गुफाएं आदि का तत्व दर्शन है। एक लाख चालीस हजार पद हैं। समवयांग- जीव, अजीव के एक से सौ तक विकास दर्शाये हैं। भगवतीसूत्र- गौतम स्वामी द्वारा भगवान महावीर से 36,000 प्रश्न किये हैं, उनके उत्तर लाखों पदों में दिये हैं। ज्ञातधर्मकथा- उपधानतप, संलेखना, सत्य, शील, उत्तम . भावों पर प्रकाश डाला है।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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