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________________ 69/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार को स्वयं पाकर, संघ के लिये भी उक्त वरदान दिला सकते 7. अब प्रत्येक पद की प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन करें। नमस्कार अरिहंतों को, 'नमोअरिहंतांण'- अरिहंत प्रभु वे हैं जिन्होंने जीवन काल में केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया। राग द्वेष को जीत लिया। आयुष्यपूर्ण होने के साथ जो सिद्ध हो जाते हैं। अरिहंत(सामान्य) जिनके शेष कर्मों की अवधि एवं आयुष्य कर्म में अंतर रह जाने पर एवं विशेष क्रिया जो समुद्घात कहलाती है उसके द्वारा पांच हृस्व अक्षर बोले उतनी अवधि में शेष सभी कर्म (धातीकर्म- ज्ञानावरणी, दर्शानावरणीय, मोहनीय एवं अंतराय पहले ही नष्ट हो चुके हैं। केवल्यलब्धि के समय ही ) नाम, गोत्र वेदनीय एवं आयुष्य भी पूर्ण कर लेते हैं। इस प्रकार आठों कर्म क्षय कर लेते हैं। सर्वज्ञ हैं। 'अट्ठविहं पिय कम्मं, अरिभूयं होई सव्व जीवाणं। तं कम्ममरिहंता, अरिहंता तेण वुच्चंति।। -आव.नि 914 संसार के सब प्राणियों के वैरी अष्टकर्मों को अरिहंत ने चूर-चूर कर दिया इसलिए अरिहंत कहलाते हैं। प्रत्येक को इस कार्य के लिये राह दिखाने वाले हैं। 'संसार अडवीए मिच्छत्तण्णाण' मोहिअपहाए। 'जेहिं कयदेसिअत्तं ते अरिहंते पणिवयामि ।। . ___ -आ.नि 909 आठ कर्म जिनमें ज्ञानवरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एंव अंतराय चार घाती कर्म तथा वेदनीय नाम, गोत्र, आयु, अघाती कर्म हैं जो जगत के सब जीवों के साथ शत्रु रूप से जुड़े हुए हैं। इन कर्मों का वे संहार करने वाले होने से इन्हें अरिहंत कहते हैं। (इनमें मोहनीय कर्म सब धाती कर्म का भी सेनानी है।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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