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ऐतिहासिक प्रमाणों से पोरवाल ओसवाल एवं श्रीमालों के एक होने की पुष्टि/32
रचना के श्रीमाल व श्रीमाल ने गुरु उप ओसवाल से रतनप्रभ सुके प्रथम गोत्र में पाये जाते हैं। कई-कई
में 775 उदयप्रभ सूरि भीनमाल पधारे एवं तथा 200 वर्ष पश्चात् उनके परस्पर के शिष्य रतनप्रभ सुरि द्वारा लोगों को जैन बनाकर ओसियां ले जाने पर वे ओसवाल कहलाए, यही कथन ज्यादा उपयुक्त एवं वास्तविक प्रमाणों पर आधारित है। यह पोरवाल ओसवाल के एक होने तथा श्रीमालों का भी उत्पत्ति, स्थान, धर्मगुरु आदि एक ही होने का सटीक प्रमाण है। ____ ओसवाल इतिहास के लेखक श्री मांगीलाल द्वारा अपनी रचना के पृष्ठ 198 पर भी उल्लेख किया है कि पोरवाल, ओसवाल, श्रीमाल व श्रीमाल नगरी के राजा आदि उन्हीं सभी के प्रयासों से रतनप्रभ सुरि ने गुरु उपाधि धारण की। इसलिए श्रीमालों को ओसवालों के प्रथम गोत्र में गिनते हैं। इनके कई गौत्र ओसवाल या पोरवाल या दोनों में पाये जाते हैं। कश्यप, आग्रेय, मेहता, गांधी, कटारिया, बोहरा, कूकंडा, नाहर कई-कई गोत्र दोनों में हैं। इनमें श्रीमाल और ओसवाल भी सम्मिलित हैं। पृष्ठ 198 पर उल्लेख किया है कि ओसवालों के 440 गौत्र माने थे लेकिन अन्य कई और सूचियों के अनुसार उनके 2600 गौत्र संग्रहित हैं। उनमें पोरवाल, श्रीमाल तथा पल्लीवाल भी शामिल हैं।
श्रीमालों में महाकवि माघ का नाम विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि महाकवि कालीदास के बाद 'शिशुपाल वधम' उस श्रेणी का ग्रंथ माना गया है। इसी ग्रंथ के पृष्ठ 330 के अनुसार माघ के पिता का नाम दप्त या दत्त था। ये श्रीमालपुर के श्रीमाल गोत्रीय महाजन श्रेष्ठी थे। माघ का समय छठी शताब्दी का है। डॉ हरमन जेकोबी माघ का समय सप्तम शताब्दी से पूर्व मानते हैं। सातवीं शताब्दी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन्गसांग ने भी भीनमाल के शासक राजा वरमलात का उल्लेख किया है।
. श्रीमाल श्रेष्ठी उदयन-ये प्रसिद्ध उद्योगपति थे। पृष्ठ 335 पर उल्लेख है कि वे मारवाड़ से कर्णावटी जाकर बस गए। आचार्य हेमचन्द्र को आठ वर्ष की उम्र में दीक्षा का श्रेय भी श्रेष्ठी उदयन को ही है। उन्होंने कुमारपाल को भी आश्रय दिया था। ऐसा