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________________ 31 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार की प्रतियाँ तैयार करते करते एक एक अतिरिक्त प्रति तैयार की। आगमों का गहराई से अध्ययन किया । स्वयं तो साधु न बन सके लेकिन बाईस सम्प्रदाय के सन् 1473 ई. 44 साधु अनुयायी बनाए । इनमें एक विशिष्ठ गच्छ आज भी आगम अनुसार शास्त्र अध्ययन एवं आचरण के लिए विख्यात है । श्री मांगीलाल जी भूतोड़िया द्वारा रचित उपरोक्त ओसवाल इतिहास के प्राक्कथन में ओसवाल जाति की उत्पत्ति के बारे में लेखक द्वारा विभिन्न मतों से कोई निश्चित निर्णय नहीं पाने पर डॉ. एल. एम. सिंघवी द्वारा अपने प्राक्कथन पृष्ठ 10 / 11 पर यह कहा गया है कि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि यह घटना किसी एक ही दिन हुई हो । निर्विवाद रूप से, भगवान नेमिनाथ एवं भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महावीर के समय में हुई थी। तदन्नतर कई सदियों तक जैन धर्म स्वीकार करने पर किसी व्यक्ति या समुदाय को क्षत्रिय या ब्राह्मण से वैश्य बनना पड़ा हो इसका प्रमाण स्पष्ट रूप से नहीं मिलता | पृष्ठ 15, श्री भूतोड़िया के ईसा पूर्व 500 वीं शताब्दी निष्कर्ष का मुख्य आधार कुछ बही - भाटों एवं चारणों द्वारा प्रयुक्त शब्द विरात 70 वर्ष आधार माना है। कुछ बही भाट चारणों ने आबू पर्वत पर यज्ञ के अग्नि कुण्ड से प्रकट चार क्षत्रिय वीरों के साथ जोड़ते हुए यह बताया है कि उस वंश में उपल देव का जन्म हुआ जिन्होंने कालान्तर में ओसियां में नया राज्य स्थापित किया एवं सर्पदंश से मृत उनके पुत्र को रत्नप्रभ सूरि ने पुनर्जीवित किया । यह सर्व विदित है कि यह छंद कविता इत्यादि कुछ 300-400 वर्षों से अधिक पुराने नहीं हैं। मेरे विचार में जैन ओसवाल जाति के उद्भव का समय मारवाड़ रे प्रगना री विगत संवत् 1033 से पूर्व का रहा होगा। लेकिन यह तारीख भगवान महावीर के परिनिर्वाण के 70 वर्ष बाद ही पड़ती है यह नहीं कहा जा सकता। अर्थात् जो विद्वान इतिहासकार अगरचन्द नाहटा ने पोरवाल इतिहास की भूमिका में उल्लेख किया है कि वि.स. 764
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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