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________________ 33 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार • उल्लेख मिलता है कि कुमारपाल ने बड़ी सेना सहित सपाद लक्ष्य पर आक्रमण किया। इस युद्ध में कुमारपाल को अपार धन हाथ लगा। 7 करोड़ स्वर्ण मोहरें और 700 अरबी घोड़े, उसके अधिकार में आए। गुजरात के दानवीर जगडुशाह - श्रीमाल वंशीय धन कुबेर जगडुशाह ने वि.स. 1311 से 1323 के बीच पड़े महा दुष्काल के समय लाखों मन अनाज लोगों में वितरीत किया व लाखों लोगों को जीवनदान दिया। उस समय गुजर राजा विशाल देव के मंत्री तेजपाल की सहायता से जगडुशाह ने कच्छ, भद्रेश्वर प्रकोटे का निर्माण करवाया। 70 भव्य मंदिर एवं 900 प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई । एक अन्य श्रीमाल गौत्रीय शाह ठक्कर पेरू का नाम सम्मान से लिया जाता है। राज दरबार में उनके वंशजों को ठक्कर की उपाधि मिली। अल्लाऊद्दीन खिलजी ने उन्हें अपना भण्डारी नियुक्त किया । वि.स. 1313 में कुतबुद्दीन शाह दिल्ली के तख्त पर बैठा। उसने भी ठक्कर पेरू को राज्य की टकसाल का मुख्य अधिकारी नियुक्त किया और इस प्रकार 1377 से 1382 में भी बादशाह ग्यासुद्दीन तुगलक के शासन काल में भी इसी पद पर बहाल रहे। उन्होंने 'रत्न परीक्षा' के बेमिसाल ग्रंथ लिखे । अन्य भी जैसे ‘ज्योतिसार', 'गणित सार', 'वास्तु सार' आदि विशिष्ट ग्रंथों की रचना की | अब प्रसिद्ध ओसवालों का उल्लेख किया जाता है। विक्रम संवत् 1320 में माण्डवगढ़ के उक्केशवंशीय श्रेष्ठी पेथड़ कुमार हुए। इन्होंने 84 विभिन्न स्थानों में जिन मंदिर बनवाये। वे तपागच्छ आचार्य धर्मघोष सुरि के भक्त थे। कहते हैं कि भगवती सूत्र में जहां-जहां पर गौतम शब्द आया एक - एक स्वर्ण मुद्रा दान में दी । इसी तरह 36000 स्वर्णमुद्रा से आगम की पूजा की।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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