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जैन दर्शन एवं आधुनिक विज्ञान/252
एक लहर (Wave) के रूप में भी है , इस द्विगुणात्मक धर्म के कारण प्रयोग से यह पाया कि किसी एक डिब्बे के दो भाग कर उसके बीच में विभाजन की दीवार में छेद किया जाए और फोटोन को प्रवेश किया जाए तो डॉ. डी.एस. कोठारी के अनुसार वह डिब्बे के एक भाग A में भी हो सकता है या अन्य भाग B में भी हो सकता है, A में होते हुए भी A में नहीं हैं इसी तरह B में होते हुए भी B में नहीं है। अथवा A और B दोनों में नहीं हैं। __अनेकांत के सिद्धान्त के अनुसार भी वस्तु के अनेक गुणधर्म के अनुसार सप्तभंगीरूप में अस्ति, नास्ति, दोनों का सम्मिश्रण तथा अव्यक्त, अस्ति अव्यक्त, नास्ति अव्यक्त, अस्ति-नास्ति दोनों अवयक्तव्यं, स्थितियाँ बन सकती है व भौतिक-विज्ञान के क्षेत्र में अतः W. Heisenberg ने अनिश्चतता का नया सिद्धान्त 'क्वांटम मैकेनिक' में दिया। अन्य वैज्ञानिक Neilbohr ने एक उसी , सिद्धान्त को और बढ़ाते हुए दूसरे का पूरक सिद्धान्त दिया। क; प्रत्यक्ष रूप में विरोधी गुण धर्म वाले वास्तव में एक दूसरे के लि आवश्यक एवं पूरक है, जैसे स्त्री-पुरूष, दिन-रात, श्रम औ विश्राम आदि। विरोधी-धर्म वाले भाव एवं वस्तुए पूरक हैं। जैन दर्शन का भी यही संक्षेप में अनेकान्त सिद्धान्त है, जैसा कि तत्वार्थ सूत्र के अध्याय 5 सूत्र न 5.31 में दर्शाया है-"अर्पिता अर्पिता सिद्वे"- अर्थात जो प्रकट कहा गया है अथवा अप्रकट रह गया है प्रमुख पक्ष और गौण, निश्चय और नय, दोनों मिलकर ही सत्य बनता है । "उत्पाद व्यय ध्रोव्य युक्तम् सत्' अर्थात् एक साथ ही उत्पाद, व्यय अर्थात क्षरण एवं ध्रुव रूप से यानी शाश्वत का संयोग सम्मिलित रूप से सत्य है। शुभ प्रभावों का उदय , अशुभ का क्षय एवं ध्रुव रूप में आत्म ज्योति ये तीनों का योग साथ-साथ है।
जैन दर्शन में बहुत पूर्व ही परमाणु, अणु, स्कन्ध जो अजीव (पुद्गल) पदार्थ हैं ; जिनके मूल गुण, रस, वर्ण, गन्ध, स्पर्श आदि हैं और उसके अनेकानेक भेद है, जान लिये थे, इसकी पुष्टि भी