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________________ 253 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार वैज्ञानिकों ने हाल में की है। ऐसे अणु से भी अति सूक्ष्म सैकड़ों परमाणु हैं जिनमें से 60 ऐसे परमाणुओं को चिन्हित किया जा चुका है। 61 वां परमाणु ( Higgsboson) God's Particle को भी पहचानने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिकों ने दो जगह प्रयोग किए हैं। स्विट्जर लैण्ड में मीलों लम्बी गहरी सुरंग में प्रोटोन को सूर्य की किरणों की गति से प्रहार कर चूर-चूर कर वह स्थिति, कृत्रिम रूप से उपस्थित की जो Big Bang के समय बनी थी। उससे लगभग ऐसे उपरोक्त Particle की जांच और खोज संभव हो सकी है जो अन्य भारविहीन Particles को सघनता एंव भार (Mass) प्रदान करता है । कुछ Particles वाहक के रूप में भी कार्य करते हैं। जैसे फोटोन, ग्रेवियोन, क्वार्टज, ग्लुओन इत्यादि । संक्षेप में जैन दर्शन भी यही कहता है कि जीवात्मा भी मृत्यु के समय अपने साथ पुराने कर्मों का फल ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय इत्यादि आठ कर्म एवं उनके साथ भारविहीन जीवन धारण के अन्य कर्म पुद्गल - आहार, तैजस, मन, भाषा, श्वासोच्छवास आदि वहन कर ले जाती है और नया जन्म धारण करती है। भौतिक-शास्त्र की नवीनतम खोज के अनुसार इन सूक्ष्मतम परमाणुओं की आपस में संघटन (Fusion ) की क्रिया के अधीन एकीकरण होता है जो प्रबल न्यूक्लीयर शक्ति के अधीन होता है। उनसे प्रोटोन, इलेक्ट्रान, न्यूट्रोन बनते हैं और उसी शक्ति फलस्वरूप अणु का निर्माण होता है, कई अणु मिलकर स्कन्ध बनते हैं एवं विद्युत चुम्बकीय शक्ति से खनिज - द्रव्य, चट्टानें, लाखों रसायन तथा गुरुत्वाकर्षण एवं चुम्बकीय शक्ति के अधीन बड़े ग्रह, सितारे एवं निहारिकाएँ बनीं । विस्फोट के समय जब तापक्रम लाखों-लाखों डिग्रियाँ था वह एक हजार करोड़ वर्ष में गिरकर कुछ हजार डिग्री तक पहुंचा तब करीब 400 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी का निर्माण हुआ एवं एक कोशीय जीव त्रस एवं स्थावर इत्यादि शुरू होने में फिर 300 करोड़ वर्ष और लगे। कुछ अधिक
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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