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251/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार क्रम रहेगा। इसलिये इस दृष्टि से विज्ञान एवं दर्शन में विद्रोह, नहीं वरन् समानता है, सहयोग है। आईन्सटीन ने इसलिए लिखा, "धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अन्धा है।" उन्होंने यहाँ तक कहा कि, "मैंने भौतिक पदार्थों का अध्ययन किया है और मुझे, और जन्म मिले तो मैं इन सबको जानने वाले का अध्ययन कर सकू।" w. Heisenberg ने भी इसलिए भौतिक-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र पर लिखा। Feyman ने भौतिक- नियम की प्रकृति के बारे में लिखा। वैज्ञानिक एवं दार्शनिक डॉ. डी.एस. कोठारी ने 'पूर्व का दर्शन' एवं 'क्वांटम सिद्धान्त' (कान्टम मैकेन्किस) पर लिखा है। विनोबा जी ने भी यहाँ तक कहा कि "वर्तमान विभिन्न धर्म नींव मात्र है, जो कई बार भ्रमपूर्ण है एवं पूजा-पाठ के अलग-अलग प्रकार पर आश्रित हैं। अन्धविश्वास का भी सहारा लिया जाता है जबकि वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर जीव मात्र की एकता उनके संरक्षण, अहिंसा, अनेकांत जैसे सिद्धान्तों की वैज्ञानिक खोज के आधार पर इनमें एकरूपता लानी होगी।" । ... सन् 1960 की दशाब्दी के बाद भौतिक-विज्ञान में एक क्रांति आई उसके पूर्व भौतिक विज्ञान के नियमों में अटूटता निश्यचात्मक सिद्धान्त की प्रमुखता थी। जैसे 98 पदार्थों की खोज, जिसमें प्रत्येक का निश्चित अणुभार पाया गया उदाहरणार्थ जैसे, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, पारा, सोना, चांदी इत्यादि का अणुभार निश्चित है। गुरुत्वाकर्षण-नियम अपरिवर्तनीय एवं निश्चित है। लेकिन 1960 के बाद अणु के विभाजन पर न केवल अणु में और लघु-अणु , इलेक्ट्रोन, प्रोटोन, न्युट्रोन पाए गए वरन ऐसे भारविहीन सूक्ष्मतम पार्टीकल सैक्ड़ों पाये गये जो पुद्गल होते हुए भी अनेक-अनेक गुणधर्म युक्त थे। ये सूक्ष्मतम् 'नेनो परमाणु इतने सूक्ष्म है कि वे एक इंच के दस लाखवे हिस्से के दस लाखवे के बराबर हैं। वैज्ञानिकों ने प्रयोग द्वारा पाया कि सूर्य की रश्मि में न केवल सूक्ष्मतम् परमाणु पार्टिकल फोटोन कण हैं वरन्