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गुणानुराग/194
वरन् आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है। होना चाहिये था "each according to his need, and not according to his greed”.
बढ़ते हुए मांसाहार, मद्यपान, उन्मुक्त-भोग के फलस्वरूप उष्ण-कटि-बंधीय जंगल जो हमारे प्राण-वायु-ऑक्सीजन के भण्डार थे, वे काफी मात्रा में नष्ट हुए हैं। एक किलो मांस प्राप्ति में एक किलो शाकाहार की तुलना में सौ गुणा अधिक पानी एवं आठ गुणा खाद्यान नष्ट होता है। आने वाले युद्ध इस जल संकट के कारण होंगे। भूतल-जल काफी कम हो गया है। दीर्घ अर्से से कल कारखानों से कार्बन डाई ऑक्साईड गैस के भारी उत्सर्जन (CO2) से एवम् संचय से ध्रुव-प्रदेश के शीत-सागर एवं हिम-भंग ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। समुद्र-तटीय-प्रदेश एवं टापू डूबने के कगार पर हैं। भयंकर सुनामी, भूकम्प, बाढ़ अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि, सूखे से हमारा कृषि उत्पादन गिर रहा है। समय रहते हम नहीं चेते तो सारा पर्यावरण क्षत विक्षत हो जायेगा।
प्रश्न है गुणों की वृद्धि, जन समुदाय में कैसे हो? कुछ दिन पूर्व महाप्रज्ञ जी ने, तत्व-बोध के लेख में ठीक कहा, "हमारे निर्णय, बुद्धि विवेक से न होकर, कषायों से होते हैं।" विवेक वृद्धि कैसे हो, कषाय कम कैसे हो? उपाय है सत्य की चाह से, सम्यक्-ज्ञान, दर्शन से , सत्संग एवं शुभ ध्यान से, मिथ्यात्व मिटाने से, सत्य की चाह ज्यों ज्यों बढ़ेगी यह स्वतः सुलभ होगा। एकान्त-दुराग्रह की जगह अनेकांत-भाव- दर्शन अपनाने से क्रोध,मान, माया, लोभ, अहंकार, प्रमाद, स्वतः शिथिल एवं अधिकाधिक प्रयास से समाप्त होंगे।
स्पष्ट विदित होगा-हिंसा, झूठ, चोरी, असंयम, परिग्रह बुरे हैं। प्रमाद युक्त हिंसा आदि का परिणाम सिवाय विनाश के, और कुछ नहीं है। गीता में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट कहा है, "कर्म का , फल सुनिश्चत है जैसा करेगा वैसा भरेगा।' तत्वार्थ में भी कहा. है- गुणी, ज्ञानीजन में दोष निकालने, उन्हें नीचा दिखाने का ईर्ष्या भाव, वृथा बाधाएँ उपस्थित करने, अनादर करने से दर्शन