________________
गुणानुराग/ 192
उदाहरण प्रस्तुत इसलिए किया है कि गुणानुरागी अपने पथ में और अधिक संख्या में आगे बढ़ें।
तत्वार्थ सूत्र (उमा स्वाति द्वारा रचित आगम आधारित जैन दर्शन का अपूर्व ग्रंथ, जो दो हजार वर्ष पुराना है)। इसके अनेक स्त्रोतों में मार्ग-दर्शक तत्व गुण उल्लेखित है, जिनमें से कुछ प्रस्तुत हैं। जीवन व्यवहार के चार सिद्धान्त बताये हैं- 'मैत्री, प्रमोद, करूणा, माध्यस्थ भाव ।' सामान्य जनसे सदा मैत्री भाव, अपने से ज्यादा गुणी, महान व्यक्तियों के लिए प्रमोद - भाव, (अन्तर से आल्हाद), हमारे से निम्न स्तर वालों पर करुणा भाव, तथा जो सिखाने पर भी कुमार्ग न छोड़ उन पर माध्यस्थ या उपेक्षा–उदासीन वृति रखें। जिससे हमारा शुभ हो, अशुभ - पाप से हम बचें। कई बार अधम लोगों को सुधारने की जगह वे हमें भी
•
डूबते हैं।
बचपन में गाँधी को बहादूर बनाने के नाम पर, चोरी करना, मांस खाना दोस्त ने सिखा दिया, लेकिन सत्यता का गुण होने से पिता को लिखे पत्र में मोहनदास ने चोरी करना स्वीकार कर पिता को पत्र थमाया। पिता ने कुछ न कहा, उनकी आँखों से मोती तुल्य आँसू टपक पड़े। वही प्रभाव बालक मोहनदास पर पड़ा। उन्होंने आत्म - कथा में लिखा कि अहिंसा का मेरे जीवन में यह प्रथम साक्षात पाठ (Objective Lesson) था। उस गाँधी ने जीवन में सत्य, अहिंसा के प्रयोगों से इतनी महानता प्राप्त की कि संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों ने एक स्वर से उन्हें 'सहस्राब्दी - पुरूष' (Man of Millennium) माना । सर्वोच्च कोटि के वैज्ञानिक आईंस्टीन ने लगभग अद्ध शताब्दी पूर्व श्रद्धाजंली में कहा, "आने वाली पीढ़ियाँ मुश्किल से विश्वास करेगी की यह हाड़ मांस का पुतला धरती पर चलता था।" गाँधी की अहिंसा कायरों की अहिंसा नहीं वीरों की अहिंसा थी । वे प्राणों की बाजी लगाकर भी आततायी, निष्ठुर, अन्यायी का हृदय - परिवर्तन करने में विश्वास रखते थे। उनकी कथनी करनी में अन्तर नहीं था ।