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गुणानुराग
सद्गुणों की महिमा करना, ऐसे व्यक्तियों का बहुमान करना एवं अनुशीलन करना गुणानुराग है । यह इस कलियुग की महत्ती आवश्यकता है, जिससे घोर स्वार्थ-परता, अनाचार, आतंकवाद, पर्यावरण, विनाश, सर्व-संहारक अणु बमों आदि से इस विश्व को त्राण मिल सके। . बाल-मंदिर की पूर्व संस्था कुशलाश्रम में प्रातः ईश प्रार्थना में हम लोग 'मेरी भावना' गाया करते थे, जिसके कुछ अंश आज भी हृदय पटल पर स्मृति रूप में उभर जाते हैं।
"गुणी जनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे, बने जहाँ तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे।
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे, गुण-ग्रहण का भाव रहे नित् दृष्टि न दोषों पर जावे।
अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे, तो भी न्याय मार्ग से मेरा अविचल पथ, डिगने ना पाये।"
इससे पूर्व भी प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापक जी ने हमें प्रतिज्ञा दिलाई कि, "मैं सदा सत्य बोलूंगा।" इस अमिट छाप के कारण कालेज जीवन में भी प्रिंसीपल महोदय द्वारा प्रमाण पत्र में Brotca full pos, "That I was exceedingly receptive” (गुणग्राही)। कॉलेज काल के चारों वर्षों का best conduct and behaviour पारितोषिक प्राप्त किया। अत्यन्त विनम्रता पूर्वक यह