________________
159/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
आस्रव तत्वः
कायवाड़मनःकर्मयोग :
(6:1, तत्वार्थ सूत्र) अर्थ:- जीव अजीव के बाद अब सात तत्वों में से 'आस्रव तत्व' का निरूपण किया जाता है। शरीर, वचन और मन के द्वारा जो क्रिया होती है उसको योग कहते हैं। इन भेदों के साथ शुभ योग और अशुभ योग, प्रत्येक का पुनः भेद है। हिंसा करना, चोरी करना, कुशील-मैथुन करना, अशुभ कायिक कर्म योग है। पापमय वचन बोलना, मिथ्या-वचन या मर्म-भेदी कथन भी अशुभ वचन योग है। किसी के बारे में दुश्चिंतन करना, उसके उत्तमगुणों में दोष-बताना, ईर्ष्या करना, मन का अशुभ योग है। इसके विपरीत सत्कार्य, सबके कल्याण के चिंतन शुभमनोयोग है।
Kāyāvān manah karmyogah
___ (6.1, Tattavarth Sutra) MEANING :- The action of body, mind and spech is 'yog'. Further divsion of these respective actions can be made into auspicious and inauspicious ones. To commit violence, theft, prohibited sexual acts, are inauspicious actions. Similarly uttering false, sinful, injurious infalmmatory words is unauspicious. So is to think evil of others, being jealous, finding faults, even with the best is also inauspicious. On the contrary good acts, words and thoughts of good of all, results into auspicious Yog or actions.
स आसवः
(6:2, तत्वार्थ सूत्र)