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कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में/158
जिससे उम्र निर्धारित होती है। जिससे शरीर निर्धारित हो जैसे मनुष्य या अन्य जीवायोनि, वह विभिन्न शरीर निर्माण नाम कर्म तथा जिससे उच्च, नीच कुल, गोत्र मिले, वह गोत्र कर्म और अंत में जिससे दान, लाभ, भोग, उपभोग, आत्मशक्ति में बाधा आवे वह अन्तराय कर्म कहलाते हैं। अष्ट प्रवचन माता में पाँच समितियाँ, तीन गुतियाँ भी जीवन को जागरूक कर, अशुभ कर्म व अज्ञान से रोकती हैं। सावधानी पूर्वक अपनी एवं जीवों की रक्षा पूर्वक चलें, हित, मित सभ्य वचन बोलें, सामान उठाने एवं रखने में भी वही सावधानी बरतें, इच्छाओं को सीमित करने तथा मलमूत्र एवं समस्त प्रदूषित पदार्थों के उत्सर्जन, विसर्जन, जागृति पूर्वक हों, इसी तरह मन, वचन, काया से एसे कार्यों से बचें जिससे कर्म बन्धन न हो सके।
adyojnāna-darsanāvaran-vedniya-mohaniyā- ... yuska-nāma- gotranatarāyah
(8.5, Tattavarth Sutra) MEANING :- The karmas are of eight kinds (1). obscuring knowledge, (2) obscuring intutition, right inclination, attiudes and faith,(3) Pain and pleasure causing sensation,(4) Deluding vision and conduct,(5)Determining age (6) Determining his bodystrucuture, joints, voice and various other bodily functions, (7) His status at birth, class etc., (8) and obstructive one- covering or hindering beneficience, gain, comfort and satisfaction, besides spiritual endeavours.
तत्वार्थ सूत्र के छठे पाठ में निम्न दोहों में उपरोक्त विषयों पर और ज्ञान वर्द्धन किया गया है, जिसका हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद मेरे द्वारा किया गया है।