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157/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
(3) संशयवाद, (4) सबवाद सहीवाद एवं (5) अज्ञेयवाद या नास्तिकवाद आते हैं। कषाय में क्रोध, मान, माया, लोभ एवं हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा एवं स्त्री-वेद, पुरूष-वेद तथा नपुंसक-वेद आते हैं।
mithyādarsanavirati pramāda kasāy yogā
bandhahetavah.
(8.1, Tattavarth Sutra) MEANING :- Karmic bondage is due to five causes (1) deluded view, (2) non abstinence, (3) indulgence, (4) passion and (5) activities of body mind and speech. Perversion in turn is of two types- (1) one acquired through others' precepts and the other one (2) occurring naturally since ages with the soul. The important most further classification of deluded view may be of following five types-(1) Absolutism or non-dualism, (2) preverse doctrines, (3)skepticism, (4) egalitarianism and (5) being heretical or agnostic.
आधों ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुष्कनामगोत्रान्तरायाः
(8:5, तत्वार्थ सूत्र) अर्थ:- कर्म आठ प्रकार के हैं- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र एवं अन्तराय। ज्ञानावरणीय प्रकृति के कर्मबन्धन, ज्ञान का आवरण करते हैं, इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म, दर्शन यानि सही दृष्टि आस्था का आवरण करते हैं। जो सुख-दुख का अनुभव कराते हैं वे वेदनीय हैं। जो
आत्मा को भ्रमित कर मिथ्यादर्शन एवं मिथ्या आचरण करावें वे - मोहनीय हैं। आयुष्य कर्म गति अनुसार-देव, नारक, त्रिर्यन्च,