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तत्वार्थ सूत्र की विषयवस्तु एवं संदेश
लगभग दो हजार वर्ष पूर्व महान विद्वान आचार्य उमास्वाति जी द्वारा तत्वार्थ सूत्र की रचना की गई। जिसमें मात्र 344 दोहों में समस्त आगम का तत्व रूप में समावेश किया गया है। यह ऐसा ही है जैसा कि समस्त उपनिषदों को दोहन कर गीता में प्रस्तुत किया गया है। यह शुद्ध परिष्कृत रूप में सात मूल तत्व का दिग्दर्शन है। जो जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष तत्व हैं। मूल ग्रंथ संस्कृत में है जो समस्त जैनो के लिए मान्य ग्रंथ है। जिसे श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं उनके सभी पंथ स्वीकार करते हैं। प्रथम दोहे से ही स्पष्ट है कि उसकी विषयवस्तु क्या है। सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि मोक्ष मार्ग:
प्रथम पाठ मे मूलतः आत्म तत्व की विशेषता का वर्णन है। जैसे आत्म को सम्यग-दर्शन प्राप्त हो सकता है। जीव ही पांच प्रकार के ज्ञान का अधिकारी है। प्रथम दो ज्ञान मति, श्रुति ये अर्जित है या परोक्ष है लेकिन अवधि, मनः पर्याय एवं केवल-ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान है जो सीधे आत्मा की उच्च, उच्चतर एवं उच्चतम अवस्था में प्राप्त हो सकते हैं। यह कर्मों के ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय आदि कर्मों के उपशय/क्षय से प्राप्त होते हैं। प्रथम दो ज्ञान सद् या असद् दोनों संभव हैं बिना सत्य पक्ष को ध्यान में रखे इनका स्वेच्छाचारिता पूर्वक अर्थ करने से ये भ्रामक, अज्ञान या मिथ्यात्व स्वरूप भी हो सकते है।