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________________ तत्वार्थ सूत्र की विषयवस्तु एवं संदेश/140 दूसरे पाठ मे आत्मा की पाँच भाव दशाएं वर्णित हैं। औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक एवं पारिमाणिक अवस्थाएं हैं। जैसा इनके अर्थ से स्पष्ट है औपशम कर्मो का उपशम करने पर तत्वों में रूचि रखने पर कषायों को पतला करने पर आत्म शुद्धि करण इस तरह होता है जैसे मिट्टी युक्त पानी में से मिट्टी नीचे जम जाने पर ऊपर स्वच्छ जल रह जाता है। इस प्रकार उपशम भाव मे वृद्धि से सम्यक् दर्शन एवं चारित्र दृढ़ बनता है। क्षायिक भाव सबसे प्रमुख है उसमें आत्मा का दृढ मन से संकल्प होता है कि वह सभी घाति, कर्मों व ज्ञान, दर्शन, चारित्र, मोहनीय एवं अन्तराय कर्मों का सर्वथा क्षय करें एवं केवल ज्ञान प्राप्त कर शेष अधाति कर्म नाम, गोत्र, वेदनीय, आयुष्य को भी समाप्त कर मोक्ष वरण करें। औदयिक वह अवस्था है जिसमें कर्मों का उदय एवं अवधि समाप्ति पर क्षय होता रहता है और साथ-साथ कर्म बंधन का क्रम भी चालू रहता है। पारिणामिक अवस्था में जीव की स्वतः अवस्था परिवर्तित होती है लेकिन अभव्य जीव शुभ भाव में नहीं आ पाते। दीर्घकाल तक अकाम निर्जरा कष्ट सहते-सहते शनैःशनैः आत्म परिणति होती है। तत्वार्थ का इन दो प्रथम पाठ में मूल संदेश यह है कि आत्मा में अनन्त गुण हैं। शक्ति है जिससे हम अपने अज्ञान, मिथ्यात्व को दूर कर शुद्ध अनेकान्त ज्ञान, चारित्र का विकास करें। गुण स्थान में बताए क्रमानुसार आरोहण एवं अवरोहण हमारे संसारी जीव के लिए संभव है लेकिन लक्ष्य हमारा सत्य-तत्व सम्यग्-दर्शन को प्राप्त कर जिसकी कसौटी प्रशम, संवेग, निर्वेद, आस्तिक्य एवं अनुकम्पा आदि हैं , इस हेतु मिथ्यात्व दूर करें। व्रत धारण कर प्रमाद एवं कषायों पर नियंत्रण एवं त्याग करें जिससे हम केवल अधाति कर्मों को ही बांध सकें। . ___तीसरा, चौथा पाठ नरक एवं स्वर्ग से सम्बन्धित है। सभी भारतीय दर्शनो में इनका वर्णन है। तत्वार्थ सूत्र में भी इनका उपयुक्त वर्णन है। नरकवासी एवं स्वर्गवासी उपपात् जन्म पाते हैं।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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