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________________ 131/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार अपने अधिकारों से हजार गुणा अभिमान रखेंगे। माता-पिता की अपेक्षा अपनी स्त्री, पुत्र पर प्रेम बहुत अधिक होगा।" परिग्रहधारी यतियों का सम्मान करने से मिथ्यात्व को पोषण मिलता है। परमकृपालु देव श्रीमद् राजचन्द्र अनुसार निम्न अध्यात्म-शास्त्र विशेष रूप से पठनीय हैं। 1. 'भगवती- आराधना सूत्र', दिगम्बरों का ग्रंथ है। ऐसा एक ___भी ग्रंथ अच्छी तरह परिणमन करना बहुत है। - 2. 'अध्यात्मक कल्पद्रुम' वैराग्य का उत्तम ग्रंथ है। कर्ता मुनिसुन्दरसुरी हैं (श्वेताम्बर 1503 इस्वीं)। 3. 'अध्यात्मसार' कर्ता यशोविजय जी जन्म संवत 16801 4. 'तत्वार्थ-सूत्र' - रचयिता श्रीउमास्वाति/जैन धर्म का प्रारम्भिक काल ईसा की प्रथम शताब्दी। 5. 'योग-बिन्दु', 'योगदृष्टिसमुच्च्य' (कंठाग्र करने योग्य) एवं - 'योग विशिष्ठ', 'षट्दर्शन समुच्चय- कर्ता श्रीहरिभद्रजी - (ईशा की नवीं शताब्दी)। .... 6. 'शांति सुधारस'- कर्ता विनयविजय जी (1723)। 7. 'सन्मति-तर्क-न्यायवतार श्री महावीर स्वामी'- कर्ता श्री -- सिद्धसेन दिवाकर। 8. 'श्लाघ्य पुरूष', हेमचद्राचार्य कलिकाल सर्वज्ञ- ।. . 9. 'आनन्दधन चौबीसी'- कर्ता श्री आनन्द धनजी लगभग अढाई सौ वर्ष पूर्व। श्रीमद् रत्न राशि हैं, उनसे सत्य, ध्यान एवं परिग्रह का मोह तजने, का आत्म लब्धि यानि कर्म निर्जरा प्राप्त की जा सकती है।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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