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परमश्रद्धेय गुरुदेव श्रीमद् राजेन्द्रसूरी की अन्तिम देशनामय सरलार्थ एवं श्रद्धांजलि
गुरुदेव ने चतुर्विद श्री संघ एवं अन्य जन को अपने जीवन की अंतिम धर्मदेशना देते हुए कहा
"मुनियों! इस संसार में जो कुछ भी है वह सब उत्पत्ति और फिर व्ययलीला के साथ जुड़ा हुआ है। जीवन के साथ मृत्यु अविच्छिन्न भाव से जुड़ी हुई है। अज्ञानी मृत्यु से बचने का प्रयास करता है। इसी प्रयास में वह सारा जीवन मृत्युभय की पीड़ा भोगते हुए बिता देता है, फिर भी मौत से वह बच नहीं पाता, लेकिन ज्ञानियों के लिए मृत्यु मात्र एक परिवर्तन की बेला है। एक जीर्ण-शीर्ण शरीर को त्यागने का उपक्रम है। जैसे मनुष्य जीर्ण हो जाने वाले वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार मृत्यु भी जीवन का एक सुखद पर्व है। यंत्र, मंत्र, तंत्र,
औषधि इस विधान में परिवर्तन नहीं कर पाये हैं। यह संसार का परम सत्य और नियति का अटल नियम है। लगता है हमारे जीवन की भी संध्या बेला नजदीक आ गई है, जो शीघ्र ही काली रात्रि में परिवर्तित हो जाने वाली है।" __"क्रियोद्धार के पूर्व और बाद में हमने सदैव धर्मशासन की सेवा में अपने आपको लगाए रखा। इस यात्रा में हमें अनुकूलताएँ कम और प्रतिकूलताओं का सामना अधिक करना पड़ा। अनुकूलता यदि थी, तो वह अपनी साधना, उपासना, तप स्वाध्याय