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129/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
है यानी मोक्ष के साधनों का कारण भूत होने से चिंतामणि के समान कहा है वह सत्य है परन्तु यदि उसे मोक्ष का साधन किया हो तो, अन्यथा पशु देह जितनी भी उसकी कीमत नहीं ।
नहीं कषाय उप शांतता नहीं अन्तर वैराग्य।
सरलपणुन मध्यस्थता, ते मति दुर्भाग्या। दया,शांति, समता, क्षमा, सत्य, त्याग, वैराग्य,
जेमुमुक्षु घट वशे, ते सुमति सुभाग्या।। कद्राग्रह:
इन्द्रियों का निग्रह न होना, कुल, धर्म का आग्रह, मान, शलाधा की कामना, अमाध्यस्तता कद्राग्रह है। मनुष्य के लिए निम्न कार्य वर्जित हैं :- जीव को क्रोध मानादि, बहुत प्रमाद वाली क्रिया से आलस्य, अभिमान, विषय -लोलुपता, औरों को दुख देन से, घोर लालच, निंदा के आश्रव से, किसी की धरोहर हड़पने से, विश्वासघात से, मिथ्या दोषारोपण से, मिलावट के धंधे से, रिश्वत, अदत्तादान एवं हिंसा के व्यापार से बचना चाहिए। जीवन की अध्यात्मिक उन्नति-गुणस्थान:
मिथ्यात्व से जहाँ भव-भ्रमण होता है। सम्यग् दर्शन से मोक्ष प्राप्ति होती है। मिथ्यात्व रूपी भैंसा जो अनंतानुबंधी कषाय, क्रोध, मान, माया, लोभ से अनंत-चरित्र के पूले खा गया है, उसे आत्मा रूपी बल से बांधने से वश में किया जा सकता है।
आज भी जीव सत्संग करें, उपदेशानुसार चले, पुरूषार्थ करें तो आत्म ज्ञान हो जावे। निज-स्वरूप जानने का नाम समकित है। जहाँ देह के ऊपर से ममत्व दूर हो गया है, ज्ञान प्राप्त हो गया है, सत्य की चाह है ,वह परिणाम में समकित है। कषाय मंद कर सदाचार का सेवन करना आत्मार्थी होना है। आत्मा अनंत ज्ञानमय है, जितना सद्ज्ञान का स्वाध्याय बढ़े उतना कम हैं। "जिनवर थई ने जिन आराधे, ते सही जिनवर होवेरे।"