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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 137]
- मरणसमाधि 139 दुर्लभ-बोधि प्राप्त करके मनुष्य को अच्छी तरह ज्ञान सीखना चाहिए। 96. कषाय विजय उपाय
कोहं खमाइ माणं, मद्दवया अज्जवेण मायं च । संतोसेण व लोह, निज्जिण चत्तारि वि कसाए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 138]
- मरणसमाधि प्रकीर्णक 189 क्रोध को क्षमा से, मान को मृदुता से, माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें । इसप्रकार चारों कषायों को जीतना चाहिए । 97. न सुख, न दुःख
को दुक्ख पाविज्जा ? कस्सय दुक्खेहिं विम्मओ हुज्जा। को व न लभिज्ज मुक्खं ? रागद्दोसा जइ न हुज्जा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 139] __- मरणसमाधि प्रकीर्णक 139
यदि रागद्वेष नहीं हो तो संसार में न कोई दु:खी होगा और न कोई सुख पाकर ही विस्मित होगा, बल्कि सभी मुक्त हो जाएँगे । 98. अहितकर्ता, रागद्वेष
नवि तं कुणइ अमित्तो सटुवि य विराहिओ समत्थोवि। जं दो वि अनिग्महिआ, करंति रागो य दोसो य ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 139]
- मरणसमाधि प्रकीर्णक 198 समर्थ शत्रु का भी कितना ही विरोध क्यों न किया जाय, फिर भी वह आत्मा का उतना अहित नहीं करता जितना कि वश में नहीं किए हुए राग-द्वेष करते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 80