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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 131]
- आचारांग - 118/8/20 मध्यस्थ अर्थात् समभाव में स्थित और निर्जराकांक्षी भिक्षु समाधि का अनुपालन करें। 72. ग्रन्थियों से मुक्त गंथेहिं विवित्तेहिं, आउकालस्सपारए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 131]
- आचारांग - 1/8/8/26 साधक को बाह्य और अन्तरंग सभी ग्रन्थियों से मुक्त होकर आयुष्यकाल (जीवन-यात्रा) पूर्ण करना चाहिए । 73. मर्यादा का अनुलंघन .. नाइवेलं उवचरे माणुस्से हि वि पुढेव ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 131]
- आचारांग 1/8/8/23 मुनि मनुष्यकृत (अनुकूल-प्रतिकूल) उपसर्गों से आक्रान्त होने पर भी मर्यादा का उल्लंघन न करें। 74. मुनि आचार
इंदिएहि गिलायन्तो, समियं आहरे मुणी । तहा विसे अगरिहे, अचले जे समाहिए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 132]
- आचारांग - 1/8/8/29 इन्द्रियों से क्षीण होने पर भी मुनि समता धारण करें । यदि वह अचल और समाहित है तो परिमित स्थान में शारीरिक चेष्टा करते हुए भी निंद्य नहीं है। 75. नश्वर काम भेउरेसु ण रज्जेज्जा, कामेसु बहुयरेसु वा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 133] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 74