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605. रूग्ण-सेवा से निर्जरा
गेलण वेयावच्चे करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1451]
- व्यवहार 10/37 श्रमण रुग्णसाथी की सेवा करता हुआ महान् निर्जरा और महान पर्यवसान (परिनिर्वाण) करता है। 606. वैयावृत्य से तीर्थंकर वेयावच्चेणं तित्थयर नामगोयं कम्मं निबंधइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1460]
- उत्तराध्ययन 29/43 वैयावृत्त्य (सेवा) से आत्मा तीर्थंकर होने जैसे उत्कृष्ट पुण्य कर्म का उपार्जन करती है। 607. भूख, वेदना णत्थि छुहाए सरिसया वियणा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1624]
- ओघनियुक्ति भाष्य 290 संसार में भूख के समान कोई वेदना नहीं है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 208