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________________ सुव्रती साधक कम खाए, कम पीये I 601. देहभाव - विसर्जन हो. झाण जोगं समाहट्टु, कायं विउसेज्ज सव्वसो । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1407] सूत्रकृतांग 1/8/26 ध्यानयोग का अवलम्बन कर देहभाव का सर्वतोभावेन विसर्जन करना चाहिए । 602. जय-पराजय सवीरिए पराइणइ, अवीरिए पराइज्जइ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1408] भगवती सूत्र 1/8 शक्तिशाली (वीर्यवान्) जीतता है और शक्तिहीन (निर्वीय) पराजित जाता है । - 603. जीव-स्वरूप जीवा णो वड्ढंति नो हायंति अवट्टिया । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1419 ] भगवतीसूत्र 5/8 जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, किंतु सदा अवस्थित रहते हैं । - - 604. वैयावृत्त्य - परिभाषा वैयावृत्त्यम-भक्तादिभि धर्मोपग्रहकारिवस्तुभिरूपग्रहकरणे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1451] स्थानांग टीका 5/1 धर्म में सहारा देनेवाली आहार आदि वस्तुओं द्वारा उपग्रह सहायता करना "वैयावृत्त्य" कहलाता है। ('वैयावृत्त्य' शब्द सेवा के अर्थ का प्रतीक है ।) अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 207 -
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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