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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1182] - आवश्यक कथा ] अ.1 इस संसार में माता और पिता ये दोनों ही देवतुल्य हैं। 564. साधु-सेवा के फल उपदेशः शुभो नित्यं, दर्शनं धर्मचारिणाम् । स्थाने विनय इत्येतत्, साधु सेवा फलं महत् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1191] - धर्मबिन्दु । अधि. शुभ उपदेश का मिलना, धार्मिक पुरुषों के नित्यदर्शन और उचित स्थान पर विनय करना-ये साधु सेवा के महान् फल हैं । 565. न देय, न आदेय न ग्राह्याणि न देयानि, पञ्च द्रव्याणि पंडितैः । अग्निर्विषं तथा शस्त्रं, मद्यमांसं च पञ्चमम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1208] - धर्मसंग्रह 2/83 पण्डितों के द्वारा आग, जहर, शस्त्र, मदिरा और मांस-ये पाँच वस्तुएँ न किसी को दी जानी चाहिए और न ली जानी चाहिए। 566. पापभीरु श्रावक महुमज्जमंस भेसज्जमूल सत्थग्गिजंतमंताई । न कयावि हुदायव्वं, सङ्केहिं पावभीरुहिं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1208] - धर्मरत्नप्रकरण सटीक 1/614 पापभीरु श्रावकों के द्वारा निम्नांकित वस्तुएँ कदापि नहीं दी जानी चाहिए । मधु, मदिरा, मांस, औषधि-मूल, शस्त्र, अग्नि और जन्त्र-मन्त्रादि । 567. लक्ष्यानुरूप गति अणुसोयपट्टिए बहुजणम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं । पडिसोयमेव अप्पा, दायव्वो होउकामेणं ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 197
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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