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395. वचन गुप्त कौन ?
वयण विभत्ती कुसलो, वओगयं बहुविहं विआणंतो। दिवसं पि भासमाणो, तहावि वइगुत्तयं पत्तो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 758] ___ - दशवकालिक नियुक्ति 291
जो वचन-कला में कुशल है और वचन की मर्यादा का जानकार है, वह दिनभर भाषण करता हुआ भी 'वचन गुप्त' कहलाता है। 396. वचनगुप्ति-फल वइगुत्तयाएणं निम्विकारत्तं जणयइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 759]
- उत्तराध्ययन 29/54 वचन-गुप्ति से निर्विकार स्थिति प्राप्त होती है । 397. निर्विकार से ध्यान
निम्वियारेणं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहण जुत्ते यावि भवइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 759]
- उत्तराध्ययन 29/54 निर्विकार होने पर जीव सर्वथा वचनगुप्त तथा अध्यात्म योग के . साधनभूत ध्यान से युक्त होता है। 398. वन्दन से लाभ
वंदणएणं नीयागोयं कम्मं खवेइ । उच्चागोयं कम्मं निबंधइ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 770]
- उत्तराध्ययन 2940 वन्दन से आत्मा नीच गोत्र कर्म को क्षय करती है और उच्च गोत्र कर्म का अर्जन करती है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 154