________________
387. ऋजु, प्रतिबुद्धजीवी अंजु चेय पडिबुद्धजीवी तम्हा ण हंता ण विघातए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 747]
- आचारांग 1/5/5 मुनि ऋजु (सरलात्मा) तथा प्रतिबुद्धजीवी होता है । इसलिए वह स्वयं हनन नहीं करता है और नहीं दूसरों से करवाता है । 388. श्रद्धाशील वीर णिट्ठियट्ठी वीरे आगमेण सया परक्कमे । .
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 748]
- आचारांग 1/5/6 निष्ठितार्थी (श्रद्धाशील) वीर पुरुष सदा आगम निर्दिष्ट आदेश - निर्देशानुसार पराक्रम करें। 389. आगमविद् आवटुं तु पेहाए एत्थ विरमिज्ज वियवी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 748]
- आचारांग 15/6 आगमविद् पुरुष संसार चक्र को देखकर विषय-भोगों से दूर रहें । 390. आदेश अनतिक्रमण निद्देसं नाइवट्टेज्जा मेहावी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 748]
- आचारांग 1/5/6 बुद्धिमान कभी भी जिनेश्वरादि के आदेश-उपदेश का अतिक्रमण नहीं करें। 391. आसक्ति, कर्मास्त्रव द्वार
उड्ढे सोया अहे सोया तिरियं सोया वियाहिया एए सोया... अक्खाया जेहिं संगतिया सह ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 152