________________
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 735]
- आचारांग 12/6 . मूर्ख मानव अपने अति प्रमाद के कारण जन्म-श्रृंखला का निर्माण करता है जहाँ पर प्राणी अत्यन्त दु:ख भोगते हैं । 354. स्वकृत व्यथा
सएण दुक्खेण मुढे विप्परियासेइ । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 735]
- आचारांग 12/6 मूर्ख व्यक्ति स्वकृत व्यथा से ही विपरीत स्थिति प्राप्त करता है। 355. असत्कर्म त्याज्य पावकम्मं नेव कुज्जा न कारवेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 735]
- आचारांग 12/686 पाप कर्म अर्थात् असत्कर्म न स्वयं करे, न दूसरों से करवाए। 356. ममत्त्व विजेता से हु दिटे पहे मुणी जस्स णत्थि ममाइयं । '
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 736]
- आचारांग 12/6 जिसके पास ममत्त्व-परिग्रह नहीं है वस्तुत: वही मुनि मोक्ष-मार्ग का द्रष्टा है। 357. वीर निर्विकल्प अविमणे वीरे तम्हा वीरे न रज्जइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 736]
- आचारांग 12/6 वीर पुरुष निर्विकल्प होता है, इसलिए वह किसी में रस नहीं लेता
है
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 144