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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 327]
प्रश्नव्याकरण 2/7/24
यह सत्य व्रत तप और नियम से स्वीकृत है, सद्गति का पथ
प्रदर्शक है और लोक में उत्तम है । 219. सत्य, सिद्धिदाता
तं सच्चं
मंतोसहि विज्जा साहणत्थं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 327] प्रश्नव्याकरण - 2/7/24
सत्य के प्रभाव से मंत्रौषधि और विद्याओं की सिद्धि होती है ।
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220. सत्यानुरागी
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सा देव्वाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रत्ताणं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 327]
प्रश्नव्याकरण 2/1/24
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सत्य से आकृष्ट होकर देवता भी सत्यानुरागी व्यक्तियों का सान्निध्य अर्थात् सेवा सहायता करते हैं ।
221. साँच को आँच नहीं
पव्वय कडकाहिं मुच्चंते ण मरंति सच्चेण य परिग्गहिया । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 327]
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प्रश्नव्याकरण - 2/7//24
सत्यनिष्ठ मनुष्य को ऊँचे पर्वत-शिखर से नीचे फैंक दिया जाय तो
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भी वह मरता नहीं है ।
222. सत्यनिष्ठ, वन्दनीय-अर्चनीय
• मणुगयाणं वंदणिज्जं अमरगणाण अच्चणिज्जं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 327]
प्रश्नव्याकरण 2/7/24
सत्यनिष्ठ व्यक्ति, मनुष्यों द्वारा वन्दनीय - स्तवनीय है। इतना ही
नहीं, देवगणों के लिए भी वह अर्चनीय होता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 111