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140. जाना है एकदिन चइत्ताणं इमं देहं, गन्तव्वमवसस्स मे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 294]
- उत्तराध्ययन - 1946 इस शरीर को छोड़कर एकदिन मुझे अवश्य जाना है । 141. दुःख भाजन शरीर दुक्ख केसाण भायणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 294]
- उत्तराध्ययन - 1942 यह शरीर दु:खों और क्लेशों का भाजन है । 142. अशाश्वत-निवास असासया वासमिणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 294)
- उत्तराध्ययन - 1912 यह शरीर आत्मा का अशाश्वत निवासस्थान है । 143. क्षणभर भी आनंद नहीं !
माणुसत्ते असारम्मि, वाहि-रोगाण आलए । जरा-मरण घत्थम्मि, खणं पि न रमामहं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 294]
- उत्तराध्ययन - 1944 यह मनुष्य-शरीर असार है, व्याधि और रोगों का घर हैं तथा जरा व मृत्यु से ग्रस्त हैं । अत: इसमें मुझे एक क्षण भी आनन्द नहीं मिल रहा
है।
144. पाथेय बिन दुःखी
अद्धाणं जो महंतं तु, अप्पाहेओ पवज्जई । गच्छन्तो सो दुही होई, छुआ तण्हाइ पीडिओ ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 92