________________
-
जो प्रमत्त व्यक्ति है, उसकी किसी भी चेष्टा से जो भी प्राणी मर जाते हैं; वह निश्चित रूप से उन सबका हिंसक होता है, परन्तु जो प्राणी नहीं मारे गए हैं वह प्रमत्त व्यक्ति उनका भी हिंसक ही है; क्योंकि वह अन्तर में सर्वतोभावेन हिंसावृत्ति के कारण सावद्य है, पापात्मा है ।
134. कर्म - निर्जरा - हेतु
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 612] ओघनियुक्ति 752-753
जा जयमाणस्स भवे, विराहणा सुत्तविहि समग्गस्स । सा होइ निज्जरफला, अज्झत्थ विसोहिजुत्तस्स ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 613] ओघनियुक्ति 759
-
-
जो यतनावान् साधक अन्तर (अध्यात्म) विशुद्धि से युक्त है और आगम विधि के अनुसार आचरण करता है, उसके द्वारा होनेवाली विराधनाहिंसा भी कर्म-निर्जरा का कारण है ।
135. अबूझ
निच्छयमवलंबंता, निच्छयओ निच्छयं अयाणंता । नासंति चरणकरणं, बाहिर करणालाइ ||
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 613] ओघनिर्युक्ति 761
जो निश्चय दृष्टि से सालम्बन का आग्रह तो रखते हैं, परन्तु वस्तुतः उसके सम्बन्ध में कुछ जानते-बुझते नहीं हैं, वे सदाचार की व्यवहारसाधना के प्रति उदासीन हो जाते हैं और इसप्रकार सदाचार को ही मूलत: नष्ट कर डालते हैं ।
-
ॐ
136. मात्र बाह्य हिंसा, हिंसा नहीं !
न य हिंसा मित्तेणं, सावज्जेणा विहिंसओ होइ । सुद्धस्स उ संपत्ती, अफला भणिया जिणवरेहिं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 613]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 91