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- प्रश्नव्याकरण 20028 जो ममत्व-भाव से रहित हैं, संवृतेन्द्रिय हैं और आरंभ-परिग्रह से विरत हैं, वे ही श्रमण होते हैं। 110. अहर्निश जागरुकता अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सततं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 560]
- प्रश्नव्याकरण 2 10/29 सुविहित श्रमण को दिन और रात निरन्तर सजग रहना चाहिए। 111. समभावी श्रमण समे य जे सव्वपाणभूतेसु से हु समणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 560]
- प्रश्नव्याकरण 240/29 जो समस्त प्राणियों पर समभाव रखता है, वही वास्तव में श्रमण
112. साधक कैसा हो ?
पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे........ आगासं विव णिरालंबे........ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 561-562]
- प्रश्नव्याकरण 24029 साधक को कमल-पत्र के समान निर्लेप और आकाश के समान निरावलम्ब होना चाहिए। 113. मुनिः भारण्ड पक्षी भारण्डे चेव अप्पमत्ते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 562]
- प्रश्नव्याकरण 200/29 मुनि भारण्ड पक्षी के समान सदा सजग रहता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 85