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___ - सूत्रकृतांग 1/3/3/19
ऐसा सम्यक अनुष्ठान का आचरण करें जिससे दूसरा कोई व्यक्ति अपना विरोधी न बने। 90. सिद्धि-सूत्र
सवणे णाणे य विण्णाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । अण्णहवे तवे चेव, वोदाणे अकिरिया सिद्धिं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 549]
एवं [भाग 7 पृ. 412]
- भगवतीसूत्र 2/5 सत्संग से धर्मश्रवण, धर्मश्रवण से तत्त्वज्ञान, तत्त्वज्ञान से विज्ञानविशिष्ट तत्त्वबोध, विज्ञान से प्रत्याख्यान (सांसारिक पदार्थों से विरक्ति), प्रत्याख्यान से संयम, संयम से अनाश्रव (नवीन कर्म का अभाव), अनाश्रव से तप, तप से पूर्वबद्ध कर्मों का नाश, पूर्वबद्ध कर्म नाश से निष्कर्मता (सर्वथा कर्मरहित स्थिति) और निष्कर्मता से सिद्धि प्राप्त होती है। 91. परिग्रह-वटवृक्ष
लोभ कलिकसाय महक्खंधो, चिंतासयनिचिय विपुलसालो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 553]
- प्रश्नव्याकरण 1/547 परिग्रह रूपी वृक्ष के तने लोभ, क्लेश और कषाय हैं और उसकी चिंतारूपी सैकड़ों ही संघन और विस्तीर्ण शाखाएँ हैं। 92. ममता मूर्छा परिग्रहः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 553]
- तत्त्वार्थ 7/12 मूर्छा (ममता) ही परिग्रह है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 80