SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययन 32/37 जो मनोज्ञ शब्दों में तीव्रासक्ति रखता है वह रागातुर अकाल में ही - विनष्ट हो जाता है | 72. निर्लिप्त आत्मा न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पुक्खरिणी पलासं ॥ HO उत्तराध्ययन 32/47 जो आत्मा विषयों के प्रति अनासक्त है, वह संसार में रहती हुई भी उसमें लिप्त नहीं होती । जैसे पुष्करिणी के जल में रहा हुआ पलाश कमल 73. असंतुष्ट श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 490 ] सद्दे अत्तित्ते य परिग्गहम्मि । सत्तो व सत्तो न उवेइ तुट्ठि ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 490] उत्तराध्ययन 32/42 शब्द आदि विषयों में अतृप्त और परिग्रह में आसक्त रहनेवाली आत्मा को कभी संतोष नहीं होता । 74. वीतराग कौन ? समो य जो तेसु स वीयरागो । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 490] उत्तराध्ययन 32/87 जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दादि विषयों में सम रहता है, वह वीतराग है । 75. गंध - वीतराग 1 घाणस्स गंधं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु । तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 75
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy