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________________ उत्तराध्ययन 32/29 व्यक्ति लोभ से कलुषित होकर चोरी करता है 65. दुःखदायी कर्म पदुट्ठचित्तो अ चिणाइ कम्मं । जंस पुणो होइ दुहं विवागे ॥ - - उत्तराध्ययन 32/46 आत्मा प्रदुष्ट चित्त (राग-द्वेष से कलुषित) होकर कर्मों का संचय करती है। वे कर्म परिणाम में बहुत दुःखदायी होते हैं । 66. श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 489] असत्य दुःखान्त मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 489] - - उत्तराध्ययन 32/31 बोलने से पहले और उसके बाद तथा झूठ असत्यभाषी पुरुष झूठ बोलने के समय भी दु:खी होता है । उसका अन्त भी दु:खद होता है । 67. शब्द - परिग्रह में अतृप्ति सद्दाणुवाएण परिग्गहेण, उपाय रक्खण सन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 490] उत्तराध्ययन 32/41 शब्द के प्रति अनुराग और परिग्रह (ममत्व ) के कारण मनुष्य उसके उत्पादन, संरक्षण और प्रबन्ध की चिंता करता है और उसका व्यय तथा वियोग होता है, अत: इन सबमें उसे सुख कहाँ है ? और तो क्या ? उसके उपभोग काल में भी उसे तृप्ति नहीं मिलती । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-5• 73
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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