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________________ 369. शीघ्र मोक्ष अप्पबंधो जयाणं, बहुणिज्जरणे तेण मोक्खो तु । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1380] - निशीथभाष्य 3335 यतनाशील साधक का कर्मबंध अल्प, अल्पतर होता जाता है और निर्जरा तीव्र तीव्रतर । अत: वह शीघ्र मोक्ष प्राप्त कर लेता है। 370. निर्भय ज्ञानाधिपति मुनि चितेपरिणतं यस्य, चारित्रमकुतोभयम् ? अखण्ड ज्ञानराज्यस्य, तस्य साधोः कुतो भयम् ? - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1381] - ज्ञानसार 178 जिसे किसी से कोई भय नहीं है, ऐसा चारित्र जिस के चित्त में परिणत है; उस अखण्ड ज्ञानरूपी राज्य के अधिपति मुनि को भला भय कहाँ से ? 371. ज्ञानकवचधर वीर ! कृत मोहास्त्र वैफल्यं, ज्ञानवर्म बिभर्ति यः । क्व भीस्तस्य क्व वा भङ्गः, कर्मसङ्गरकेलिषु ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1381] - ज्ञानसार 17/6 जिसने ज्ञानरूप कवच धारण कर मोहराजा के सर्व शस्त्रों को निष्फल कर दिया है, उसे कर्म-संग्राम की क्रीड़ा में भय या पराजय कैसे संभव है ? 372. मुनि, गजवत् निर्भय एकं ब्रह्मास्त्रमादाय निजन् मोहच{ मुनिः । बिभेति नैव संग्राम-शीर्षस्थ इव नागराट् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1381] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 155.
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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