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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1259)
- प्रश्नव्याकरण 29/27 एक ब्रह्मचर्य के नष्ट होने पर सहसा अन्य सभी-विनय, शील, तप, नियम आदि गुणों का समूह फूटे घड़े की तरह खंडित हो जाता है अर्थात् मर्दित, मथित, चूर्णित(दुकड़ा-टुकड़ा), खण्डित, गलित और विनष्ट हो जाता है। 249. सार्थक तभी ?
तो पढियं तो गुणियं, तो मुणियं तो य चेइओ अप्पा । आवडिय पेल्लियामंतिओऽवि जइ न कुणइ अकज्जं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1259)
- उपदेशमाला 64 शास्त्रों का पढ़ना, गुनना-मनन करना, ज्ञानी होना और आत्मबोध तभी सार्थक है, जब विपत्ति आ पड़ने पर और सामने से आमन्त्रण मिलने पर भी मनुष्य अकार्य अर्थात् अब्रह्म सेवन न करे । 250. मद्यपान-मांसभक्षण में महापाप
एकश्चतुरोवेदाः, ब्रह्मचर्यं च एकतः । एकतः सर्वपापानि, मद्यं मांसं च एकतः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1259]
- सुभाषितरत्न भांडागार पृ. 104 जैसे चारों वेद एक तरफ हैं और ब्रह्मचर्य एक तरफ है, वैसे ही जगत् के सारे पाप एक तरफ हैं और मद्यपान व मांसभक्षण का पाप एक तरफ हैं। 251. व्रतराज ब्रह्मचर्य
व्रतानां ब्रह्मचर्यं हि, निर्दिष्टं गुरुकं व्रतम् । तज्जन्यपुण्यसंभार संयोगाद् गुरुरुच्यते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1259] - आगमीय सूक्तावली पृ. 35
जस चार
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 125