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________________ 190 अशरण चिन्तन सरणाए वा इह खलु काम - भोगा नो ताणाए वा, नो पुरिसे वा एगया पुवि काम - भोगे विप्पजहइ काम - भोगा वा एगया पुवि पुरिसं विप्पजहंति से किमंग पुणवयं, अन्नमन्नेहिं काम - भोगेहिं मुच्छामो ? श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 956] www सूत्रकृतांग 2/1/13 - इस संसार में निश्चय ही ये काम भोग दुःखों से रक्षा करनेवाले नहीं है। कभी पहले ही पुरुष इन्हें छोड़कर चल देता है और कभी वे पुरुष को छोड़ चलते हैं। फिर हम इन काम-भोगों में आसक्त क्यों हो रहे हैं ? - 191. जन्म-मृत्यु और हूँ । पत्तेयं जायति, पत्तेयं मरइ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 956] सूत्रकृतांग 2/1/13 प्रत्येक प्राणी अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरता है । 192. दुःख का बँटवारा नहीं ! अण्णस्स दुक्खं अण्णो नो परियाइयति । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 956] सूत्रकृतांग 21 /13 किसी अन्य का दु:ख कोई अन्य बाँट नहीं सकता । 193. जड़ पृथक्, आत्मा पृथक् अन्ने खलु कामभोगा, अन्नो अहमंसि । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 956] सूत्रकृतांग 2013 शब्द, रूप आदि काम-भोग (जड़ पदार्थ) और हैं, मैं ( आत्मा ) - अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 106
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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