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________________ 161. हिंसा अट्ठा हणंति अणट्ठा हणंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 835] - प्रश्नव्याकरण 143 कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन भी हिंसा करते हैं। 162. हिंसा-प्रयोजन कुद्धा हणंति लुद्धा हणंति मुद्धा हणंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 835] - प्रश्नव्याकरण 143 कुछ लोग क्रोध से हिंसा करते हैं, कुछ लोग लोभ से हिंसा करते हैं और कुछ लोग अज्ञान से हिंसा करते हैं। 163. महाभयंकर प्राणवध पाणवहो चंडो रुद्दो खुद्दो अणारिओ निग्घिणो निस्संसो महब्भओ.......॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 843] - प्रश्नव्याकरण IMA प्राणवध (हिंसा) चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है और महाभयंकर है। 164. हिंसा-परिणाम न य अवेदयित्ता, अस्थि हु मोक्खो त्ति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 843] - प्रश्नव्याकरण 14/4 हिंसा के कटु फल को भोगे बिना छुटकारा नहीं है। 165. धर्म, प्राणों से भी बढ़कर ! प्राणेभ्योऽपि गुरुर्धर्मः, सत्यामस्यामस्यामसंशयम् । प्राणांस्त्यजन्ति धर्मार्थं, न धर्म प्राणसङ्कटे ॥ ( अभिधान राजेन अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 98
SR No.002320
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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