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123. ज्ञान-प्रकार
विषयप्रतिभासाख्यं, तथात्मपरिणामवत् । तत्त्वंसंवेदनं चैव, त्रिधा ज्ञानं प्रकीर्तितम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1978]
एवं [भाग 7 पृ. 805]
- सिद्धसेन द्वात्रिंशत् - द्वात्रिंशिका 26/12 ज्ञान तीन प्रकार का है-विषय प्रतिभासज्ञान, आत्म परिणतिज्ञान और तत्त्व संवेदनज्ञान । 124. ज्ञान-निमग्न ज्ञानी निमज्जति ज्ञाने, मराल इव मानसे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1980]
- ज्ञानसार - 5 जैसे राजहंस मानसरोवर में निमग्न रहता है, वैसे ही ज्ञानी ज्ञान के अमृत में ही निमग्न रहता है। 125. ज्ञान
पीयूषमसमुद्रोत्थं, रसायणमनौषधम् । अनन्याऽपेक्षमैश्वर्यं ज्ञानमाहर्मनीषिणः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1980]
- ज्ञानसार 5/8 'ज्ञान' समुद्र के बिना प्रादुर्भूत अमृत है, बिना औषधि का रसायन है और किसी की अपेक्षा न रखनेवाला ऐश्वर्य है-ऐसा मनीषियोंने कहा है । 126. ज्ञान-विनय पूरक जो विणओ तं नाणं, जं नाण सो उ वुच्चई विणओ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1980]
- दशपयन्ना-चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक - 62 जो विनय है, वही ज्ञान है और जो ज्ञान है, वही विनय कहा जाता
है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 88