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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1920 ]
सूत्रकृतांग 13116
नारकीय जीव यहाँ पर किए हुए दुष्कृत्यों के कारण ही दु:खी होकर
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वहाँ दु:ख पाते हैं ।
115. यथा कर्म तथा भार
जहाकडं कम्मे तहा सि भारे ।
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जैसा कर्म किया है वैसा ही उसका भार समझो ।
116. धन - महत्ता
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1921] सूत्रकृतांग 15026
जस्स धणं तस्स जण, जस्सत्थो तस्स बंधवा बहवे । धणरहिओ उ मणूसो, होइ समो दाससेहिं ||
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1932 ] महानिशीथ 1/3
जिसके पास धन है, उसके सगे सम्बन्धी बहुत होते हैं जिसके पास धन-सम्पत्ति है उसके बंधुजन भी बहुत होते हैं। संसार में धनविहीन मनुष्य दास, नोकर-चाकर के समान हो जाता है ।
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117. ज्ञान, अकेला
एगे नाणे ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 1938] स्थानांग - 11/35
उपयोग की अपेक्षा से ज्ञान एक प्रकार का है ।
118. ज्ञान
-अक्खरस्स अनंत भागो णिच्चुग्घाडिओ जति पुण सोवि । आवरिज्जा तेण जीवो अजीवत्तं पावेज्जा |
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1939] नंदीसूत्र - 77
अभिधान राजेन्द्र कोष में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 86