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47. सोवत-खोवत
सुवइ य अजगरभूओ, सुयं पि से णस्सती अमयभूया । हो ही गोणतभूओ, णटुम्मि सुए अमयभूए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1447] - निशीथभाष्य 5305
- बृहदावश्यकभाष्य 3387 जो अजगर के समान सोया रहता है, उसका अमृतस्वरूप श्रुत (ज्ञान) नष्ट हो जाता है और अमृतस्वरूप श्रुत के नष्ट हो जाने पर व्यक्ति एक तरह से निरा बैल हो जाता है । 48. किसके लिए क्या अच्छा ? जागरित्ता धम्मीणं अथम्मियाणं च सुत्तिया सेया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1447-48] - निशीथभाष्य 5306
- बृहदावश्यकभाष्य 3386 धार्मिक व्यक्तियों का जागते रहना अच्छा है और अधार्मिकजनों का सोते रहना। 49. जागते रहो ! जागरह णरा णिच्चं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1447] - निशीथभाष्य 5303
- बृह भाष्य 3283 मनुष्यों ! सदा जागते रहो। 50. कौन सोए ? कौन जागे ?
अत्थेगतियाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू । अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1448] - भगवती - 12/248 [2 ]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 68
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