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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1422]
- दशवैकालिक 4/24 अयतनापूर्वक चलनेवाला साधु त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। 36. जयणा तव वुड्डिकरी जयणा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1423]
- सम्बोध सत्तरि 67 जयणा तपोवृद्धिकारिणी है। 37. दिनचर्या ऐसी हो ?
जयं चरे जयं चिटे, जयमासे जयं सए । जयं भुंजंतो भासंतो, पावकम्मं न बंधइ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1423 ]
- दशवैकालिक 4/31 चलना, खड़ा होना, बैठना, सोना, भोजन करना और बोलना आदि सभी प्रवृत्तियाँ यतनापूर्वक करते हुए साधक को पाप-कर्म का बंध नहीं होता। 38. जयणा, धर्ममाता जयणा य धम्म जणणी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1423]
- संबोधसत्तरि 67 जयणा धर्म की माता है। 39. यतना 'जयणा धम्मस्स पालणी चेव ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1423 ]
- संबोधसत्तरि-67 यतना धर्म का पालन करनेवाली है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 65