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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2731]
- सूत्रकृतांग - 2239 सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं। 445. पौद्गलिक सुख-विरक्ति धम्मसद्दाएणं साया-सोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2732]
- उत्तराध्ययन - 29/5 धर्म पर दृढश्रद्धा हो जाने से जीवात्मा शातावेदनीयजनित पौद्गलिक सुखों की आसक्ति से विरक्त हो जाती है । 446. दशधा धर्म
संयमः सुनृतं शौचं, ब्रह्माकिञ्चनता तपः । क्षान्तिर्दिवमृजुता, क्षान्तिश्च दशधा ननु ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2734]
- धर्मसंग्रह - 3 संयम, सत्य, शौच, ब्रह्मचर्य, अकिंचनता, तप, क्षान्ति, सरलता, ऋजुता और क्षमा-ये धर्म के दस लक्षण हैं । 447. तत्त्वद्रष्टा अण्णहा णं पासए परिहरेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2737]
- आचारांग - 12/5/89 तत्त्वद्रष्टा (वस्तुओंका) उपभोग-परिभोग अन्यथा दृष्टिकोण अर्थात् भिन्न दृष्टि से करें। 448. महामुनि कौन ? सव्वगेहिं परिण्णाय, एस पणत्ते महामुणी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2760]
- आचारांग - 1/6/2084 समग्र आसक्ति को छोड़कर समर्पित होनेवाला महामुनि होता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4. 169