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________________ 380. बोल, तराजू तोल अबिति वियागरे । जो कुछ भी बोले विचारकर बोले । 381. गोप्य, गुप्त जं छन्नं तं न वत्तव्वं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2704 ] सूत्रकृतांग 1/9/25 श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2704 ] सूत्रकृतांग 1/9/26 किसी की कोई गोपनीय बात हो, तो नहीं कहना चाहिए । - 382. अभद्र, वचन तुमं तुमंति अमणुण्ण, सव्वसो तं ण वत्तए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2704 ] सूत्रकृतांग - 1/9/27. तू-तू जैसे अभद्र शब्द कभी किसी भी रूप से नहीं बोलना - चाहिए । 383. हँसो, मर्यादित नातिवेलं हसे मुणी । मुनि को मर्यादा से अधिक नहीं हँसना चाहिए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2704 ] सूत्रकृतांग 1/9/29 384. बोलो, पर बीचमें नहीं ! SPER भासमाणो न भासेज्जा । ad श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2704] सूत्रकृतांग 1/9/25 के बीच में मत बोलो । किसी बोलते हुए अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4153
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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