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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग पृ. 2677]
- सूत्रकृतांग - TRAN अभी इस जीवन में समझो, क्यों नहीं समझा रहे हो ? 343. मनुष्यत्व-दुर्लभ णो सुलभं पुणरावि जीवियं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2677]
- सूत्रकृतांग - 12MM यह मनुष्य जीवन फिर मिलना आसान नहीं है। 344. बोधि-दुर्लभ संबोही खलु पेच्च दुल्लभा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2677]
- सूत्रकृतांग - TRAN भवान्तर में सम्यग्बोधि (अन्तर्जागरण) मिलना मुश्किल है। 345. बीता नहीं लौटता णो हूवणमंति रातिओ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2677]
- सूत्रकृतांग 1AAN बीती हुई रातें फिर लौटकर नहीं आती। 346. धर्मसर्वस्व
धम्मो ताणं, धम्मो सरणं धम्मो गइ पइट्ठा य । धम्मेण सुचरिएण य, गम्मइ अजरामरं ठाणं ॥ .
- श्री अभिधान राजेन्द्र.कोष [भाग 4 पृ. 2680]
- तन्दुलवेयालिय पयत्रा - 171 धर्म त्राण है, धर्म शरण है, धर्म ही गति है और धर्म ही आधार है। धर्म की सम्यक् आराधना करने से जीव अजर-अमर स्थान को प्राप्त होता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 143
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