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192. जीव अनास्रव
राईभोयण विरओ, जीवो भवइ अणासवो ।
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उत्तराध्ययन
रात्रि - भोजन के त्याग से जीव अनास्त्रव होता है ।
193. तप- परिभाषा
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2199 ]
30/2
तापयति अष्टप्रकारं कर्म इति तपः ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2199]
आवश्यक मलयगिरि खण्ड 21
जो आठ प्रकार के कर्मों को तपाता है, उसे 'तप' कहते हैं ।
APPCOR
194. दुःसह्य नहीं
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धनार्थिनां यथा नास्ति, शीततापादिदुस्सहम् ।
तथा भव- विरक्तानां तत्त्वज्ञानार्थिनामपि ॥
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2202 | ज्ञानसार 31/3
जैसे धनार्थी के लिए सर्दी और गर्मी दुसह्य नहीं है वैसे ही संसार से विरक्त तत्त्वज्ञानार्थी के लिए शीततापादि कुछ भी दुसह्य नहीं है । 195. तप ही ज्ञान
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ज्ञानमेव बुधा प्राहुः, कर्मणां तापनात्तपः ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2202]
ज्ञानसार - 31
पंडितों का कहना हैं कि कर्मों को तपानेवाला होने से तप, ज्ञान
ही है।
196. शुद्ध तप की कसौटी
यत्र ब्रह्म जिनाच च कषायाणां तथा हतिः । सानुबन्धा जिनाज्ञा च तत्तप शुद्धमिष्यते ॥
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 106